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इक तेरे राज़ को दुनिया से छुपाने के लिए / जगदीश तपिश

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इक तेरे राज़ को दुनिया से छुपाने के लिए
बातें क्या-क्या न तलाशी हैं बहाने के लिए

मेरी अख़लाक़ मंदियों का ज़र्फ़ तो देखो
ज़िन्दगी कम पड़ी ग़ैरों पे लुटाने के लिए

अपनी परछाईं से हम ने सवाल पूछा है
कौन आएगा अन्धेरों को मिटाने के लिए

बेगुनाही का आज दे गए सबूत मुझे
साथ में आइना लाए थे दिखाने के लिए

 ऐ "तपिश" धड़कनें देती हैं ज़िन्दगी का पता
लापता लाश कहाँ जाए ठिकाने के लिए