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इक दिया दिल में जलाना भी बुझा भी देना / मोहसिन नक़वी
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इक दिया दिल में जलाना भी बुझा भी देना
याद करना भी उसे रोज़ भूला भी देना
क्या कहूँ ये मेरी चाहत है के नफरत उसकी
नाम लिखना भी मेरा लिख के मिटा भी देना
फिर न मिलने को बिछड़ता हूँ मैं तुझसे लेकिन
मुड़ के देखूँ तो पलटने की दुआ भी देना
ख़त भी लिखना उसे मायूस भी रहना उससे
जुर्म करना भी मग़र खुद को सज़ा भी देना
मुझको रस्मों का तकल्लुफ भी गवारा लेकिन
जी में आये तो ये दीवार गिरा भी देना
उससे मंसूब भी कर लेना पुराने किस्से
उसके बालों में नया फूल सज़ा भी देना
सूरते नक़्शे-कदम दश्त में रहना मोहसिन
अपने होने से न होने का पता भी देना