भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इक दुश्मने-वफ़ा से तमन्ना वफ़ा की है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
इक दुश्मने-वफ़ा से तमन्ना वफ़ा की है
हर बात लाजवाब दिले-मुब्तला की है
दिल-में हमारे चाह किसी बे-वफ़ा की थी
दिल में हमारे चाह किसी बेवफ़ा की है
पहले किसे थी ताबे-नज़र अब तो ख़ैर से
रक़्सा रूखे-सबीह पे सुर्खी हया की है
वैसे तो बेवफ़ा हैं ज़माने के सब हसीं
लेकिन कुछ और बात मिरे बेवफ़ा की है
उठ एहितमामे-जामे-मये- अरगवां करें
शिमले में 'रहबर' आज तो सर्दी बला की है।