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इक नई दुनिया बनाने चल / एस. मनोज
Kavita Kosh से
गीत गाने मुस्कुराने चल
इक नई दुनिया बनाने चल
आदमी है भीड़ में तन्हा
आदमीयत को बढ़ाने चल
बेबसी की खौफ है सब पे
बेबसी की जड़ हिलाने चल
नफरतों की आंधियों में भी
प्यार का दीपक जलाने चल
है मचा कोहराम चारों ओर
अमन के तू गीत गाने चल
कैद में घर बेटियां अब भी
मुक्ति का परचम उठाने चल