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इक पल की ज़िन्दगी का हम हिसाब क्या करें / मोहम्मद इरशाद

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इक पल की ज़िन्दगी का हम हिसाब क्या करें
सुनकर के उनसे अब कोई जवाब क्या करें

कानों में उनके चीखती दुनिया का शोर है
सुनतें नहीं हैं लोग अब ज़नाब क्या करें

जिसमें नहीं अम्नो-वफा प्यार की बातें
रख करके ऐसी हम कोई किताब क्या करें

फूलों को रखने का भी हुनर जाता रहेगा
काँटों बगैर ले के अब गुलाब क्या करें

‘इरशाद’ ज़िन्दगी की हकीकत है सामने
आँखों में अब बसा के कोई ख़्वाब क्या करें