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इक शजर सरसब्ज़ था,काटा गया / सिया सचदेव
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इक शजर सरसब्ज़ था,काटा गया
आदमी को हर तरह बांटा गया
मिट गए दिल के सभी शिकवे _गिले
दूरियां को प्यार से पाटा गया
कोई मामूली न थी सतही चुभन
दिल की गहराई तलक काँटा गया
दिल में फिर उम्मीद की शम्में जली
बज उठी शहनाई,सन्नाटा गया
सोचती हूँ क्यूं सिया केवल मुझे
आज़माइश के लिए छांटा गया