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इखलाक़ की पूंजी को लुटाना नहीं भूले / सिया सचदेव
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}- इखलाक़ की पूंजी को लुटाना नहीं भूले
दुश्मन को भी हम दोस्त बनाना नहीं भूले
जिसमें था बहुत जोश वो गाना नहीं भूले
जिन्दा है सो जीवन का तराना नहीं भूले
मेयार से गिरते हुए देखा न गया तो
हम दोस्ती का फ़र्ज़ निभाना नहीं भूले
दुनिया के तेरे बिन न कोई काम रुकेगा
हर बार मुझे वो ये जताना नहीं भूले
रास आया उन्हें कब ये के हँस लूँ मैं दो घड़ी
देखा जो मुझे खुश तो रुलाना नहीं भूले
दुनिया के तेरे बिन न कोई काम रुकेगा
हर बार मुझे वो ये जताना नहीं भूले
दिल ही नहीं मजरूह मेरी रूह भी घायल
वो ज़ख्म मेरे दिल पे लगाना नहीं भूले
वो शीश महल में भी न रह पाए ख़ुशी से
हम अपना सिया टूटा ठिकाना नहीं भूले