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इच्छा / धनराज शम्भु

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एक हवा है यह
जिस में सियासत की गंध है
हर कोई उस की महक लेने के लिए
खुली जगहों में
ऊंची जगहों में
स्वतंत्र रूप से खड़े हैं
किसी को ज़ुकाम भी हुआ
किसी को कोई नयी बीमारी
दबोचने को दौड़ी
साथ में खड़े साथी ने
आनन्द विभोर हो कर
लम्बी और ठण्डी सांस ली
उस समय किसी को
किसी की आवश्यकता नहीं
किसी के काम आने का
समय नहीं रहा
सभी में यही जिज्ञासा है
शीतल और खुशबुदार हवा
जीवन को लम्बी
सुखमय-अचिंतित बनाती
मरने की बात किसी के पास नहीं
हर एक अमरत्व के अमूर्त अपदेशों की
प्रतिक्रियाएं दिखा रहा
बीमारियों को ऐसे ही
मिटाने में लगे हैं ।