भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इज़्ज़तपुरम्-1 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
ठंडा हो चूल्हा
अनुपस्थित हो / धुआँ
खामोश हो / बरतन
और भड़की हो
भूखी आग
तो दाँत
अपनी जड़ों की
गीली मिट्टी / और
कच्ची हरियालियों को
चबाने / और
उजाड़ने पर
उतर आयें
जब / शुष्क आँतों की
मरोड़ पर
खोखले आदर्शों का
बोझ / और भी
गरू पड़े
क्योंकि / ज्यादा देर
सुस्ताना / और
खाली रहना
नहीं जानता
पेट / जीवन की
यात्रा में
नन्हीं तृषा
बीहड़ों में
भटके
उन्मुक्त रास्ते
अज्ञात में
खुलें