भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इज़्ज़तपुरम्-33 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
अपेक्षाएँ
अधिक प्रबल हों
तो उपेक्षाएँ भी
सिर उठाकर
बोलने को विवश हों
तब
अवज्ञा में
देर न लगे
और भीतर से
ज्वालामुखी
फूट-फूट पड़ें
ऐसे में कोई नहीं बचता
अनुशासन हीनता के
आरोप से