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इज़्ज़तपुरम्-56 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
ये मुई
जाने
निकली
किस कुएँ से?
खुली इतनी
कि भूल गयी
बाँधना लहँगा-चोली
निर्लज्ज
आँख का पानी
मरा नहीं अब तक