भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इज़्ज़तपुरम्-58 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
कहाँ जाये
अब मैना?
डराओ
धमकाओ
निकालो
तो भी फुदककर
फिर घुसती
उसी पिंजरे में
परों में
अब जान कहाँ
उडती पातों में
शामिल हो
फिर वापस लौटे
नीड में अतीत के