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इज़्ज़तपुरम्-63 / डी. एम. मिश्र

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सुखद
स्मृतियों के
नेाक घुसें
छाती में
तेज रक्तचाप हो

आहटों के पत्ते
यूँ पास से
स्पर्श करें
रेशे-रेशे शाख के
झकझोर उठें
व्यतीत
कटु अनुभव भी
अच्छे लगें

गहरी पौठ में
डूबी हुई
पलकें असम्भव की
प्रतीक्षा में
पूरी न बंद हों
न पूरी खुल सकें