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इज़्ज़तपुरम्-88 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
ताँबे के ऊपर से
उतर गया मुलम्मा
छद्म नाम
धुल गया
छोड़ गया
रंग अपना
तेजाब में वक्त की
फिर क्या
अब खलास
ढाँचे पर
जो नाम डाल दो