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इजोरिया रातिमे एकसर यात्री / राजकमल चौधरी

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इजोरिया रातिमे एकसर यात्री होइत अछि चन्द्रमा...एकसर यात्री
फूल-पात जकाँ आकाशमे पसरल तारावली
धरती पर आलस्य-निद्रामे सूतल, शान्त, नदी
ककरो आँगनमे झरइत हरसिंगार
कोनो खिड़की लग ठाढ़ि ककरो प्रतीक्षा करैत कोनो नववधू
ई सभ कियो चन्द्रमाक संगी नहि, सहयात्री नहि
एकसर अछि चन्द्रमा...
इजोरिया रातिमे एकसर अछ, एकसर यात्री अछि चन्द्रमा
हमरे सन एकसर
हमरे सन ताकि रहल अछि कोनो समुद्र, कोनो मृत्यु,
कोनो अन्धकार सर्प-विवर
हमरे सन एकसर अछि चन्द्रमा
हमरे सन पियासल अछि, थाकल अछि, जर्जर अछि चन्द्रमा
हमरे सन एकसर अछि...

(आखर, राजकमलक स्मृति अंक: मई-अगस्त, १९६८)