इठला-इठला सावन बरसे / विमल राजस्थानी
दो जोड़े नील नयन बरसें
ज्यौं काजर कारे घन बरसें
पा विरहातप पीड़ा पिघली
बन बूँद-बूँद बाहर निकली
सुधियों की बिजली चमक-दमक-
कर रही विभासित प्रेम-गली
दर्दों की तप्त दुपहरी में
इठला-इठला सावन बरसे
भोला मन बात नहीं माने
छलना को सहज सही जाने
रेतों के दामन को सौंपे
अनमोल मोतियों के दाने
यह बात हुई कुछ ऐसी ही
मरघट में ज्यौं जीवन बरसे
यह देश नहीं दीवानों का
अल्हड़ प्रेमी मस्तानों का
है प्यार पुस्तकों का कैदी
जब वैरी है मुस्कानों का
नोटों की खिर-खिर प्रेम-गीत
छवि के शव पर न सुमन बरसे
कुछ ऐसा कर मंजीर बजे
इस जीवन की जंजीर बजे
खुलकर यह प्राणों की वंशी
गहरी यमुना के तीर बजे
उस ओर नाव का रुख कर दे
दिन-रात जहाँ गुंजन बरसे
उस बगिया में ले नीड़ बसा
जिस बगिया को नंदन तरसे
सौ-सौ स्वर्गों का मन तरसे