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इठाणवै / प्रमोद कुमार शर्मा

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अजब सरणाटो
-माखी तकात् चुप।
घुप्प अंधार है भरै दिन री ड्यौढी पर
कोड़ा बरसावै काळ ज्यूं कोढी पर
उणी ढाळ :
सबद लड़तो रैयो म्हारी ज्यान सूं
देवता रूसज्यै ज्यूं थान सूं
लड़णो है लड़णो है गजब थकान सूं
खुद रै साथै बचाणा है
निज भाखा रा
-कुप।
माखी तकात् चुप।