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इणी सारूं बचियोड़ी है प्रिथमी / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
दासियां है
इणी सारूं बचियोड़ी है प्रिथमी
आंरै पगां हालै सूरज
आंरै ढबियां
होय जावै रात
ऐ उठै
ऊभौ होवै उजास
ऐ
अपांरी आंखियां है
आंरै पांण
निबटै सगळा काज
अपांनै जस ओढ़ावती
ऐ मांगै
अपांरी छत्तर छींया
नीं होवती दासियां
तौ कुण कैवतौ
अपांनै
मालक, धणी, बापजी
घड़ी पलक सांरू ई सही
ऐ बणावै
दुनिया रै
हरेक मरद रै राजा
अपांनै
जीवता राखण रा
जतन करती
ऐ हमेसा मरै बेमौत
दासियां है
इणी सारूं बचियोड़ी है प्रिथमी