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इण्डिया गेट पर एक टूटा हुआ गमला / रश्मि भारद्वाज

इण्डिया गेट पर
अमर जवान ज्योति के घेरे में
कतार में सजे गमलों में एक गमला टूटा पड़ा है
लोग घेरे की ज़ंजीर तक आते हैं
बच्चे बूढ़े जवान
प्रेमी युगल
विद्यार्थी
कोई गेट का शीर्ष छूते फ़ोटो खिंचवा रहा
कोई परिदृश्य में चमचमाती वर्दियों में खड़े जवान चाहता है
एक मुँहफट लड़का, जो कहीं दूर से आया है
ज़ोर से अपने दोस्त से पूछता है
इसके अन्दर हम नहीं जा सकते क्या !
मोदी जा सकता है !
अच्छा मोदी जा सकता है, हम नहीं जा सकते !

गमला अब भी वहीं टूटा पड़ा है
एक छोटी लड़की फूल के पौधे को गिरा देख परेशान हो जाती है
वह थोडी देर बन्दूक ताने जवानों को देखती है आसपास खड़ी भीड़ को टटोलती है
फिर अपने नन्हे हाथों को ज़ंजीर के अन्दर डाल
चाहती है कि टूटा हुआ गमला उठा दे
उसकी बड़ी बहन उसे पीछे खींचती
आँखें तरेरती है
बच्ची सहमी आँखों से कभी गमले
कभी प्रहरियों को देखती
पीछे हट जाती है
गमला वही गिरा रह जाता है

ज़ंजीर के बाहर
नीले कपड़ों और नीली आँखों वाली
नन्ही अफ़गानी सारा गोल-गोल भाग रही
जीवन में शायद पहली बार इतना उन्मुक्त होकर भागी है
ज़ंजीर के बाहर
बांग्लादेशी मुहम्मद है
प्रेयसी के साथ चटपटे चने खा रहा
रूस से आई स्वितलाना है
जिसे सब चोरी-छिपे निहार रहे
और हैं भारत के कई रंग-बिरंगे टुकड़े
ज़ंजीर के अन्दर
एक टूटा हुआ गमला है
और एक तख़्ती टंगी है
स्मारक की दीवार, खम्बों और ज़ंजीर को न छुएँ