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इतना उजाला / गोविन्द कुमार 'गुंजन'

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यदि मेरे दामन में
इतने अंधेरे नहीं होते तो
इतना उजाला कहाँ रखता जो तुमने दिया

पहाड़ों से उतरती हुई समय की नदी
भविष्य का एक गीत गाती है-‘ कल कल ’
अपने रास्ते में जो भी आ जाए
उसे बहा ले जाती है-पल-पल

यदि तुम्हारी आँखों में
मेरी आत्मा की जडे़ इतनी गहराई से
उतर ना गयी होती तो
जिंदगी के पहाड़ों से उतरती हुई
यह वक्त की नदी पता नहीं
कहाँ बहा ले जाती मुझे

यदि वक्त के बहुत सारे लम्हें
मैं अपनी जिंदगी से खारिज कर सकता तो
तुम्हें अपने परिचय के पहले के
कितने पल दे सकूगां चमकीले?

यदि तुम्हारे भीतर
इतनी गहरी झील न होती प्यार की
तो कहाँ बुझाता यह तमाम अंगारे
जो अब तक मुझे झुलसाते रहे हर पल

यदि मेरे दामन में
इतने अंधेरे नहीं होते तो
इतना उजाला कहाँ रखता जो तुमने दिया