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इतना ज़्यादा उधार रहता है / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
इतना ज़्यादा उधार रहता है
कर्ज़ सिर पर सवार रहता है
उसको विश्वास ही नहीं आता
शन्त सागर में ज्वार रहता है
शेर की खाल ओढ़ ली, तब से
शेर बन कर सियार रहता है
उसको चलने में लुत्फ़ आता है
वो जो नदिया की धार रहता है
मैं नहीं पार कर सका सीमा
और वो सीमा के पार रहता है
सेठ साहब को जागते सोते
एक.दो तीन ,चार रहता है
मैं भी इस बात को समझता हूँ
उसके गुस्से में प्यार रहता है