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इतना ज्यादा वर्तमान / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
					
										
					
					मैं अपना बचपन भूल रहा हूँ
अपने बच्चों का बचपन भी 
इतना ज्यादा वर्तमान हो रहा हूँ
कि मुझे इतिहास होने में देर नहीं लगेगी।
	
	