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इतना धीरे / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
हमने कहा कि
धीरे-धीरे कड़े कोस ये कट जायेंगे
हमने कहा कि
धीरे-धीरे भर जायेंगे घाव हमारे
हमें पता था
आँसू भी अब सूख चुके हैं,
किसी तरह की
कहीं तरलता एक बूँद भी नहीं बची है,
फिर भी हमने यही बताया
बूँद-बूँद से घट भरता है
लेकिन इस शंकाकुल मन को
क्या समझाता
पूछ रहा जो कोंच-कोंच कर
कठफोड़वा-सा चोंच मारता
धीर-समीरे जमुना-तीरे
अपनी जगह ठीक है... लेकिन...
इतना धीरे !