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इतना भी आसान कहाँ है ! / जगदीश व्योम
Kavita Kosh से
इतना भी
आसान कहाँ है
पानी को पानी कह पाना !
कुछ सनकी
बस बैठे-ठाले
सच के पीछे पड़ जाते हैं
भले रहें गर्दिश में
लेकिन अपनी
ज़िद पर अड़ जाते हैं
युग की इस
उद्दण्ड नदी में
सहज नहीं उल्टा बह पाना !
इतना भी
आसान कहाँ है
पानी को पानी कह पाना !!
यूँ तो सच के
बहुत मुखौटे
क़दम-क़दम पर
दिख जाते हैं
जो कि इंच भर
सुख की ख़ातिर
फ़ुटपाथों पर
बिक जाते हैं
सोचो !
इनके साथ सत्य का
कितना मुश्किल है रह पाना !
इतना भी
आसान कहाँ है
पानी को पानी कह पाना !!
जिनके श्रम से
चहल-पहल है
फैली है
चेहरों पर लाली
वे 'शिव' हैं
अभिशप्त समय के
लिये कुण्डली में
कंगाली
जिस पल शिव,
'शंकर' में बदले
मुश्किल है
ताण्डव सह पाना !
इतना भी
आसान कहाँ है
पानी को पानी कह पाना !!