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इतना हुस्न पे हुज़ूर न ग़ुरूर कीजिए / मजरूह सुल्तानपुरी
Kavita Kosh से
इतना हुस्न पे हुज़ूर ना ग़ुरूर कीजिए
दिल के मारों का ख़्याल कुछ ज़रूर कीजिए
यूँ न फेरिए नज़र मुड़ के देखिए इधर
कहिए जो भी चाहिए इतनी अर्ज़ है मगर
जो हैं आपके उन्हें यूँ न दूर कीजिए
इतना हुस्न पे हुज़ूर ...
रोको ज़ुल्फ़ को यहीं क़ाबू दिल पे अब नहीं
ये दीवाना आपका ज़ुल्फ़ें छू न ले कहीं
यूँ न रूठ के हमें मजबूर कीजिए
इतना हुस्न पे हुज़ूर ...
यह तो जानते हैं हम गुस्सा तुम नहीं सनम
जाते-जाते आपके अब तो रुक गए क़दम
कहिए है ना दिल की बात, मंज़ूर कीजिए
इतना हुस्न पे हुज़ूर ...
(फ़िल्म -- ’मोहब्बत इसको कहते हैं’ - 1965)