इतनी मुद्दत बाद मिले हो!
किन सोचों में ग़ुम रहते हो?
इतने खाईफ़ क्यों रहते हो?
हर आहट से डर जाते हो
तेज़ हवा ने मुझ से पुछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो?
काश कोई हमसे भी पूछे
रात गए तक क्यों जागे हो?
मैं दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो!
कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो?
पीछे मुड़ कर क्यों देखा था
पत्थर बन कर क्या तकते हो?
जाओ जीत का जश्न मनाओ!
में झूठा हूँ, तुम सच्चे हो
अपने शहर के सब लोगों से
मेरी खातिर क्यों उलझे हो?
कहने को रहते हो दिल में!
फिर भी कितने दूर खड़े हो
रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आये हो
हमसे न पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो?
'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो, फिर भी अच्छे हो