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इतनी सी बात थी जो समन्दर को खल गई / हसीब सोज़

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इतनी सी बात थी जो समन्दर को खल गई ।
का़ग़ज़ की नाव कैसे भँवर से निकल गई ।

पहले ये पीलापन तो नहीं था गुलाब में,
लगता है अबके गमले की मिट्टी बदल गई ।

फिर पूरे तीस दिन की रियासत मिली उसे,
फिर मेरी बात अगले महीने पे टल गई ।

इतना बचा हूँ जितना तेरे *हाफ़ज़े में हूँ,
वर्ना मेरी कहानी मेरे साथ जल गई ।

दिल ने मुझे मुआफ़ अभी तक नहीं किया,
दुनिया की राय दूसरे दिन ही बदल गई ।

  • हाफ़ज़े-यादाश्त