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इतने दर्द नहीं थे इससे पहले / महेंद्र नेह
Kavita Kosh से
इतने दर्द
नहीं थे
इससे पहले ।
राहें विकट कँटीली
मौसम क्रूर बहुत थे
सुख के सपने
कुलरिल, दूर बहुत थे
किन्तु बाँह के
और सांस के रिश्ते,
इतने सर्द
नहीं थे
इससे पहले ।
नदी, नदी जैसी थी
जंगल, जंगल जैसे थे
हवा, हवा जैसी थी
मरुथल, मरुथल जैसे थे
किन्तु डाल के
और पात के चेहरे
इतने ज़र्द
नहीं थे
इससे पहले ।