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इतने पे छोड़ जा कि किनारा दिखाई दे / प्रेमरंजन अनिमेष

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इतने पे छोड़ जा कि किनारा दिखाई दे
जब रात हो तो राह का तारा दिखाई दे

इक सच्ची आशिक़ी की ये दुनिया मिसाल है
फिर कैसे इसको जिसने सँवारा दिखाई दे

दिल घर ही ऐसा है कोई पहरे दे कितने ही
खिड़की कहीं खुले तो ये सारा दिखाई दे

निकला है चाँद जो उसे भर लो निगाह में
क्या ठीक है कि कल वो दुबारा दिखाई दे

ठिठकी रहीं इक उम्र तलक कितनी कश्तियाँ
कब उस तरफ़ से कोई इशारा दिखाई दे

दिल जानता है अब नहीं वो पहले जैसी बात
पर दूसरों को क्यों ये नज़ारा दिखाई दे

धोखा बहुत बड़ा हुआ है कोई समझना
कहीं और गरचे अक्स हमारा दिखाई दे

पलकों पे होंठ रख के अज़ल ले के जाय जब
हर पल जो हमने साथ गुज़ारा दिखाई दे

आँखों की ये ख़राबी या 'अनिमेष' और कुछ
पीने से पहले पानी ये खारा दिखाई दे