भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतने बहुत–से वसंत का / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
इतने बहुत–से वसंत का
क्या होगा
मेरे पास एक फूल है
इन रोज़–रोज़ के
तमाम सुखों का क्या होगा
मेरे पास एक भूल है
सदा की अछूती और टटकी
और मनहरण
पैताने बैठा है जिसके
जीवन
सिरहाने बैठा है जिसके
मरण!