इतवार में मदरास / केदारनाथ अग्रवाल
इतवार आया
और मदरास का महानगर
धूपिया आलोक में नहाया
तनाव शैथिल्य से मुक्त
मुसकुराया
चेतन चाल से चली हवा ने
एक-एक पेड़
और एक-एक फुनगी को
मातृवत् गुदगुदाया,
फूल-फूल को चूम-चूमकर खिलाया
गंध-गंध की गाँठ वृन्त वृन्त पर खुलीं,
और गान गान के पंख
प्यार-प्यार से फड़फड़ाए
दिन का बचपन प्रमोद के आँगन मे खेला,
रंग और रूप का लग गया मेला
‘स्वीपर’ ने आज
अवकाश मनाया
घर का कूड़ा हमने बाल्टी में भरकर
नीचे पहुँचाया
हमने और गृहिणी ने कपड़े सबुनाए,
धूप में सूखने को फैलाए
हम भी ‘हैंडपंप’ से
पानी भरकर नहाए,
और चाय के साथ हमने ‘ब्रेड’ भी खाई
‘दूरीवान’ से
प्रधानमंत्री का बयान आया
‘हिन्दू’ अखबार ने हमें बताया
रूस और भारत को हमने
एक दूसरे का
पक्का हमदर्द पाया,
दो पहर गए
हमने बहू का बनाया
भोजन ‘पाया’
बेटे के बेटों को हमने
प्यार किया, फुसलाया;
शाम तक बुढ़ापे को हमने झुठलाया
मदरास के मौसम में हमने
आज का इतवार इस तरह बिताया-
रचनाकाल: १३-०६-१९७६, मद्रास