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इतिहास अनुभव / कुमार विमलेन्दु सिंह

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क्या इतिहास
निष्पक्ष लिखा जा सकता है?

इस प्रश्न का उत्तर है कोई?
लिखने वाला विद्वान
क्या अधिक जानता है
समसामयिक कृषक
या साधारण मनुष्य से
किसी घटना को
प्रथा लिख डाले की त्रुटि
कई बार होती होगी
या हुई भी है
जिसे धर्म मान कर
वर्तमान कष्टकर हो जाता है
नृप प्रशंसा कि अतिशयोक्तियाँ
ढक लेती हैं कई बार
अँधेरे सदनों के
विधवा विलापों को
और किसी काल्पनिक राजकन्या का विवरण
कई बार
प्रसव पीड़ा के रुदन पर
भारी पड़ जाता है

भवनों के निर्माण शैली की बातों में
उन्हीं भवनों के
उन कक्षों का वर्णन
नहीं होता
जिस में बंद हैं
किशोरियों के मानहानि की कथाएँ

वीरगति लिखकर
बंद कर दी जाती हैं कहानियाँ
उन योद्धाओं की
जिनके परिजन
हर दिन लड़े
एक भयंकर युद्ध
उन लोगों के मरने के बाद

जो युवतियाँ ले जाई गई
युद्ध में जीते पुरस्कार की तरह
उनके स्वास्थ्य का
क्या हुआ आगे?
कहीं नहीं लिखा जाता

वेशभूषा के विस्तृत लेखन में
कहीं नहीं लिखा जाता
कि नहीं जूटा पाते थे जो
प्रचलित वस्त्र
क्या पहन कर रहते थे वे?

किस ईश्वर की पुजा
विश्व के किस भाग में
कब से शुरू हुई
यह बताया जाता है अवश्य
परन्तु, यह नहीं बताया जाता है
कि केन के हत्यारा बन जाने पर
उसके "इलोही" ने
दंड दिया उसे
या लेता रहा उपहार
इस घटना के बाद भी

अगर जानना हो कभी
उस युग में विक्षिप्तावस्था से ग्रसित
किसी वृद्धा को
कैसे रखा जाता था
तो क्या पढ़े कोई?
भोजन भी बदल देते हैं इतिहासकार
देवों के भी और मनुष्यों के भी
स्वयं को
बदली हुई राजनीतिक स्थितियों में
स्वीकार्य बनाने के लिए
और सोचते भी नहीं
कि जीवन
मृत्यु में बदल जाता है
वर्तमान में
उनके इतिहास बदलने की चेष्टा से

एक नए विषय को गढ़ा जाए
जिसमें घटनाओं को अनुभव किया जाए
ना कि पढ़ा जाए