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इतिहास का वतन के हर पृष्ठ हो सुनहरा / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
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इतिहास का वतन के हर पृष्ठ हो सुनहरा
हर रात हो दीवाली, हर दिवस हो दशहरा
इस गुलिस्तां में हर दम मौसम बहार का हो
सपने में भी कभी हो पतझार का न पहरा
हो मज़हबी जुनूनों की जल के ख़ाुक़ होली
इन्सानियत का दिल पर सबके हो रंग गहरा
झुककर महल कुटी को हँस कर गले लगाए
दुख-दर्द की सदा पर हो आसमां न बहरा
हर तरफ़ हो नज़ारा जन्नत का सरज़र्मी पर
दौरे-जवाल अब ये पल को रहे न ठहरा
इंसाफ़ के हों सबके जज़्बात दिल में पैदा
बाँचे ‘मधुप’ न कोई अब स्वार्थ का ककहरा