भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतिहास के ये कौन से छंद है ? / सांवर दइया
Kavita Kosh से
इतिहास के ये कौन से छंद है ?
आज कारखाने, कल शहर बंद हैं!
सांझ के कुहासे को क्या दोष दें,
दिन में सूरज फैला रहा धुंध है।
खुली हवा मांगने गये तो देखा,
दयानतदार दुनिया बहुत तंग हैं!
अपनी नीतियां कभी बताते नहीं,
गालियां उगलते आज सब मंच हैं।
एक-दूसरे को लतिया रहे सभी,
चारों तरफ फैल रही दुर्गंध है।