भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इत्तो ई है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
पाणी रै जोर में टेंटीजता
गाजता-गरजता
धूम-धडाकै सूं आया लोर
टूट र बरस्या घडी क
पून री फटकार लागतांई
छोड दिया पग
थूक मुट्ठी भाग्या लोर
हेला पाड़ती रही धरती
बस, इत्तो ई है जोर ?