भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इत्तौ ई नीं जांणै कांई / चंद्रप्रकाश देवल
Kavita Kosh से
थनै चावणौ इज
थनै उडीकणौ है
थूं थारी उडीक सूं पैली
पूगोड़ी है म्हारै मांय
आपरी चूकती मुद्रावां सागै
समझ में नीं आवै
जद थनै नीं चिंतारतौ व्हूं
तद कीकर उडीक सकूं
फेर आपां जांणां ई नीं
के कद व्है जावांला उडीकता हतास
अर कद पाछा ताखड़ा
कद कर लेवै अतीत सवारी आज माथै
अर कद आज चढ जा अतीत री कड़ियां में
कीं नीं कथीज सकै
खराखरी
कीं पतियारौ नीं इण रौ
ले, म्हैं छोडूं खुद नै
थारै भरोसै
म्हारा हेत!
आं अरथां में इज व्है तकदीर
अर व्है अदीठ आंक
प्रीत-नाथ!
थूं इत्तौ ई नीं जांणै कांई?