इनका जीना है / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
एक बाँह में रीना तो
दूजी में मीना है
बाकी सबका मरना
बाबू, इनका जीना है
लोकतंत्र के बने पहरूए
रक्षा करते हैं
जनग न मन का धन
साहब जी घर में भरते हैं
कर बॅंटवारा बन्दर-सा
हक सबका छीना है
तंत्र इन्होंने जब से साधा
निष्फल मंत्र हुआ
हथियाया है शिखर इन्होंने
सबको मिला कुआं
अमृत आप पिया करते
विष जग को पीना है।
शंका जब तक समाधान में
बदल न पाएगी
राम दुलारी घर-घर की
भौजी कहलाएगी
घाव दिये जो इनने-उनने
हमको सीना है
सुविधाआंे की मधुर मलाई
चाट रहे हैं ये
चीन्ह चीन्ह कर माखन-मिसरी
बाँट रहे हैं ये
इनका खून खून है अपना
खून पसीना है
सदी गुजरना है
इस लोटे से इस गागर में
सागर भरना है
बतलाता हूँ, तुम्हें शाम तक
क्या-क्या करना है
ठीक बाद में तुम्हें पाटनी
मीलों लम्बी खार्इ्र
अभी नापकर हमें बताओ
सागर की गहराई
इच्छाओं के पुल से
दुख की सदी गुजरना है
चलो अभी तुम छैनी लेकर
सीधा पर्वत काटो
पारे को मुट्ठी में लेकर
दो हिस्सों में बांटो
इसी जनम में लाख मर्तबा
हमको मरना है
पकड़ तुम सुई चलो
पिरोना इसमें हमको हाथी
तारे दिन में गिनो, करो
ई-मेल हमें तुम साथी
स्थितियाँ हैं विकट इन्हीं से
हमें उबरना है