भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इनको करो नमस्तेजी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज गाँव से आये काका,
इनको करो नमस्तेजी।

जब जब भी वे मिलने आते,
खुशियों की सौगातें लाते।
यादें सभी पुरानी लेकर,
मिलते हँसते हँसतेजी।

याद करो छुटपन के वे दिन,
कैसे बीते हैं वे पल छिन।
बचपन कंधे पर घूमा है,
इनके रस्ते-रस्ते जी।

जाते बांदकपुर के मेले।
छ्ह आने के बारह केले।
एक टके के दस रसगुल्ले!
मिलते कितने सस्तेजी?

काकाजी को ख़ूब छकाया,
गलियों सड़कों पर दौड़ाया।
खोलो खोलो बेटे खोलो,
स्मृतियों के बस्ते जी।