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इनसानी दिमाग़ भी क्या अजूबा चीज़ है! / शुभेश कर्ण

Kavita Kosh से
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इनसानी दिमाग़ भी
क्या अजूबा चीज़ है !

वह हजारों तरह का फितूर
क्षण में
रच सकता है

एक दिन
मैंने सपने में देखा
पृथ्वी की बोली लगाई जा रही है

पेप्सी और कोक
चंद्रमा को ख़रीद चुकी हैं
और माइक्रोसॉफ्ट
सूर्य को ।

फोर्ड की हवाएँ चल रही हैं
और सातों समुद्र
हिन्दुस्तान जीवन की
बपौती संपत्ति हैं

भारत सरकार
अब कोई प्रजातांत्रिक कल्याणकारी राज्य नहीं
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है
सेना, पुलिस, मीडिया, न्यायपालिका
सब किसी-न-किसी कंपनी के हैं ।

शब्दकोश में
‘कंपनी’ शब्द
मातृभूमि, आदर्श, ईश्वर और प्रेम का
पर्याय है
और जनता का अर्थ है
कंडोम ।

हर जगह
एक गैसीय अमेरिका फैला हुआ है
और दुनिया के तमाम लोग
अमेरिकी झंडे के नीचे
झुके हुए गा रहे हैं
‘लाँग लिव अमेरिका’

हालाँकि सपनों को लेकर
कुछ वैज्ञानिक किस्म की बातें हैं

पर ऐसे सपने के बारे में
कोई क्या सोच सकता है ?