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इन्तज़ार / मख़दूम मोहिउद्दीन

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रातभर दीद-ए-नमनाक<ref>भीगी आँखें</ref> में लहराते रहे
        साँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे ।
ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा
        अपना अरमान बर अफ़गंदा नक़ाब<ref>घूँघट डाल कर</ref> आएगा ।
नज़रें नीची किए शरमाए हुए आएगा
        काकुले<ref>घुंघराले बाल</ref> चेहरे पे बिखराए हुए आएगा ।
आ गई थी दिले मुज़तर<ref>बेचैन</ref> में शकेबाई<ref>संदेह</ref> -सी
        बज रही थी मेरे ग़मख़ाने में शहनाई-सी ।
पत्तियाँ खड़कीं तो समझा के लो आप आ ही गए
        सजदे मसरूर<ref>प्रसन्न</ref> के मसजूद<ref>प्रेमिका</ref> को हम पा ही गए ।
शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
        आपके आने की एक आस थी अब जाने लगी ।
सुबह के सेज से उठते हुए ली अँगड़ाई
        ओ सबा<ref>सुबह की हवा</ref> तू भी जो आई तो अकेली आई ।
मेरे महबूब मेरी नींद उड़ाने वाले
        मेरे मसजूद मेरी रूह पे छाने वाले ।
आ भी जा ताके मेरे सजदों का अरमाँ निकले
        आ भी जा, ताके तेरे क़दमों पे मेरी जाँ निकले ।

शब्दार्थ
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