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इन्तज़ार / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
रात
ठंडी और लम्बी —
जागते
कब तक रहेंगे ?
रात
गीली ओस-भीगी,
शीत का अभिशाप
कितना और...
चुप-चुप सहेंगे ?
थरथराता गात,
कुहरे में
झुके हैं पात,
अपनी
वेदना को और....
कब तक कहेंगे ?