भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इन्तजार / विमलेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ अधेड़ औरतें
इन्तजार करते-करते
भूल चुकी थीं इन्तजार का अर्थ
उनके लिए इन्तजार करना
झाड़ू लगाने से लेकर बर्तन माँजने
और रोटी बेलने की तरह ही साधारण था
यह साधरण काम वे सदियों से
साधरणतः करती आ रही थीं

कुछ अपेक्षाकृत जवान औरतें
इन्तजार करने के बाद बौखला रही थीं
उनके लिए इन्तजार करना
लिपिस्टिक चुनने से लेकर
पार्लर जाने और सौन्दर्य बचाने के लिए
तमाम नुस्खों की खोज की तरह ही
असाधरण था
यह असाधारण काम
वे कुछ दशक पहले से
साधारणतः करती आ रही थीं

कुछ अधेड़ पुरुष खुशी-खुशी दफ्तर जाते थे
सुबह उमगते हुए
सड़क पर टहलने निकलते थे
और सूरज की पहली किरण का
इन्तजार साधारणतः करते थे

कुछ अपेक्षाकृत युवा पुरुष साधारणतः
अपने चेहरे की चिन्ता सिगरेट के धुएँ में छुपाते थे
और किसी तरल-गरल पार्टी में
सबकुछ भूल जाने का
बेसब्री से इन्तजार साधारणतः करते थे