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इन्दु से / नरेन्द्र शर्मा

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मेरे हृदय!
रख दिया नभ शून्य में किसने तुम्हें,
मेरे हृदय!
इन्दु कहलाते,
सुधा से विश्व नहलाते,
पर न पहचाना तुम्हें जग ने अभी,
मेरे हृदय!
कौन ज्वाला है,
हृदय में जिसे पाला है?
कौन विष पीकर सुधा-सीकर किया,
मेरे हृदय!
जलोगे कब तक?
कहा क्या? स्नेह है जब तक!
रात कितनी और हृ--सोचा कभी,
मेरे हृदय!
बहुत कुछ भोगा,
कभी तो अन्त भी होगा!
यान प्राण; उसाँस-मृग वाहन बने,
मेरे हृदय!
रख दिया नभ शून्य में किसने तुम्हें,
मेरे हृदय!