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इन्सान तो वही है बस, इन्सान की तरह / दरवेश भारती

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इन्सान तो वही है बस, इन्सान की तरह
साबित जो ख़ुद को कर सके मीज़ान की तरह

देगा सुबूत अपनी ज़हानत का ख़ाक वो
बेजा उलझ रहा है जो नादान की तरह

थी नोक-झोंक ही न किसी से न था लगाव
अपने ही घर में हम रहे मेहमान की तरह

वो सह रहा है ज़ेह्नी सितम उनसे ही तो आज
रक्खा तमाम उम्र जिन्हें जान की तरह

करता है क़त्ल खुद का ही इक दिन ज़रूर वो
करता रहे अमल जो भी हैवान की तरह

पेश आइए जनाब, ज़रा आजिज़ी के साथ
मत क़ह्र ढाइए कभी तूफ़ान की तरह

क़ुदरत ने भी है रह्म किया उसपे कब कि जो
'दरवेश' बदसुलूक हो शैतान की तरह