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इन्सान पे गुज़री है जो सब तुझको ख़बर है / उर्मिल सत्यभूषण
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इन्सान पे गुज़री है जो सब तुझको ख़बर है
इन्सान ही भूला है तेरी सब पे नज़र है
कश्ती है भंवर में उसे तूफान ने घेरा
नाविक है परेशान कि अब जाना किधर है
तलवों में फफोले हैं कहीं रूक नहीं जाऊँ
मंज़िल है बड़ी दूर कंटीली यह डगर है
आशा का यह दीपक है, जलाये इसे रखना
वर्ना तो यह जीवन का सफर अंधा सफ़र है
तिनकों का बसेरा है भले, शाद रहेगा
है मेहर अगर तेरी तो किस बात का डर है
झुक पाया नहीं और कहीं पर न झुकेगा
सिजदे में फ़कत तेरे झुका रहता ये सर है
मालूम है उर्मिल को कि बीतेंगे अंधेरे
‘तू वादिये जुल्मात में पैग़ाम सहर है।’