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इन्हें/ हरीश भादानी
Kavita Kosh से
क्या हो गया है इन्हें
रोशनी की
हिलकती हुई
फुलझड़ी थे कभी
राख का आकाश होने लगे
ये सूरजमुखी
क्या हो गया है इन्हें
खुलते हुए
अर्थ के
रास्ते थीं कभी
संदेह की बांबियां
होने लगी आंखें
क्या हो गया है इन्हें
हाथ घड़ते रहे
जो कंगूरे कभी
फैंकने लग गये
कांच की किरकिरी
क्या हो गया है इन्हें