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इन दिनों / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
मनुष्यता भी गिरवी रख दी
और समय पर चुकाते रहे
चक्रवृद्धि ब्याज
गणित के कलाकार ने
सफाई से बान्धी है
जीवन की डोर
अर्थशास्त्र का पत्थर सीने पर
रखकर कहा जा रहा है
आज़ादी के गीत गाओ
सपनों की लाश हासिल करने के लिए
रिश्वत मांगेंगे देवता
या गिरवी रखनी पड़ेगी भावना
मुल्क के कानून को मानो या
दण्ड भुगतो या निर्वासित होकर
जिओ - यही प्रावधान है
कब सिया था होंठों को
तारीख़ याद नहीं
याद है
सुई की तीखी चुभन
और लहू का स्वाद