भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इन दो छोटे हाथों से मैं / शिवम खेरवार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन दो छोटे हाथों से मैं,
काम बड़े कर पाता हूँ।
घर का भार उठाता हूँ।

चार किताबें, कॉपी लेकर,
विद्यालय जाना था संभव।
माँ-बापू की बीमारी में,
पढ़ना मेरा हुआ असंभव।

'गरम चाय' की टपरी पर हाँ!
मैं 'छोटू' कहलाता हूँ।

टिन्नी छुटकी बिन्नी बड़की,
दो बहनें मेरी बेचारी,
टिन्नी की पढ़ने की इच्छा,
बिन्नी की शादी की बारी,

इनकी ख़ुशियों की ख़ातिर मैं,
रोज़ काम पर जाता हूँ।

मिट्टी की गुड़िया से छुटकी,
यह इक बात कहा करती है।
'ठिकरी' लगे हुए कपड़ों को,
बेचारी पहना करती है।

नई 'फ्रॉक' दिलावानी है सो,
पैसे चार बचाता हूँ।