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इन बहारों में अकेले न फिरो / मजरूह सुल्तानपुरी
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इन बहारों में अकेले न फिरो
राह में काली घटा रोक न ले
मुझ को ये काली घटा रोकेगी क्या
ये तो ख़ुद है मेरी ज़ुल्फ़ों के तले
ये फ़िज़ाएँ ये नज़ारे शाम के
सारे आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
फूल कहती है ओ हो हो हो
फूल कहती है तुम्हें बाद-ए-सबा, तुम्हें बाद-ए-सबा
देखना बाद-ए-सबा रोक न ले
इन बहारों में अकेले ...
मेरे क़दमों से बहारों की गली
मेरा चेहरा देखती है हर कली
जानते हैं सब ओ हो हो हो
जानते हैं सब मुझे गुलज़ार में, मुझे गुलज़ार में
रंग सब को मेरे होंठों से मिले
इन बहारों में अकेले ...
(फ़िल्म -- ’ममता’ - 1966)