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इन रिश्तों को समय चाहिए / राघव शुक्ल
Kavita Kosh से
इन रिश्तों को समय चाहिए
गांठ नहीं लगने देनी है
एक डोर से बंध जाना है
ये रिश्ते हैं कांच सरीखे
इन्हें आंच पर पिघलाना है
रिश्ते हैं गुलाब से नाजुक
इनको कांटों से बचाइये
ये रिश्ते गूंगे की गुड़ हैं
ये रिश्ते फूलों की पाती
ये खुशियों के गुलदस्ते हैं
अच्छे बुरे वक्त के साथी
रिश्तों को सहेज कर रखिए
यदि रूठें तो फिर मनाइये
ये हैं गर्म खुशी के आंसू
इनको पलकों बीच संजोना
ये रिश्ते हैं मोती मूंगा
मनका मनका साथ पिरोना
ये रिश्ते ईश्वर की मूरत
मन के मंदिर में सजाइये
जब जब थमने लगती सांसें
रिश्ते धड़कन बन जाते हैं
जब भी विपदाएं आती हैं
उनके आगे तन जाते हैं
रिश्ते मीठे प्रेम गीत हैं
समय-समय पर गुनगुनाइये